Thursday 14 September 2023

श्यामलाल और लालजी !

यह सत्य घटना है.
बहुत वर्ष बीत चुके परन्तु स्मृतियाँ स्पष्ट रूप से मन-बुद्धि में अंकित हैं.
हमारे घर में पहले अहीर जगन्नाथ ( फतेहपुर बिछुवा) गैया लाकर , ताजा दूध दुहा करता था.नानी -नाना साथ में थे.
हम बहुत छोटे थे.
लेकिन अनेक वर्षों के पर्यन्त जगन्नाथ छूट गया.
उसके बाद फाफामऊ से श्यामलाल दूध अपनी साइकल पर लाया करता था.नेक आदमी था.
कई दिनों से दूध में मलाई कम निकल रही थी और दही भी पानी -पानी सा जम रहा था.
हम जब उससे शिकायत करते तो वह कहता था  : दीदी जी ,  आपके लिए हम दूध अलग से लाते हैं .खालिस दूध देते हैं.....आप ऐसा कैसे कहते हैं???
अब संसार विश्वास पर ही चलता है और यही शाश्वत सत्य है!
हम लोग श्यामलाल से दुखी थे पर वह अपनी ईमानदारी पर अडा रहता.
उसी समय कुछ माह पूर्व, घर पर लालजी का आगमन प्रतापगढ से हुआ था.
घर की शुद्धी  बड़े मन से करता था और खुश मिजाज भी था.
बगीचे में पानी देना और हमारे टिप्पू जी और बंसी भैय्या को शाम को घुमाने का काम भी किया करता था.
बहुत सभ्य था.

श्यामलाल दूर फाफामऊ से आता था और इस कारण 4 लीटर दूध उबालना, फिर ठंडा होने के बाद फ्रिज में रखना बहुत महनत लगती थी  ( गरम रसोई में पसीना -पसीना हो जाते ) और देर हो जाती थी.
जब एक दिन लालजी बोला - "बहनजी , हम हार्मोनियम बजाई का? हम भजन गाइबो.और दूध भी उबाल दैबो"।
हम दो बहनों ने सोचा- अरे यह तो कमाल का आदमी है ! 
गरम रसोई में हम दूध उबालते-उबालते अपने ही पसीने में स्नान किया करते थे. इसने तो हमें ऐसी दशा से बचाने की बात कर दी !हम दोनों गदगद होकर एकदम मान गए.
अब उन्हीं दिनों की बात है , मेरी एक सहेली के बेटे का जन्म 
हमारे घर के पास प्रचलित कमला नेहरू हास्पिटल में हुआ.
हम तीनों का भी यहीं जन्म हुआ था.मेरी बेटी और बेटे का भी!
तो उस संध्या हम दोनों बहनों ने वहाँ जाने का विचार किया.
घर पर उस शाम को हमारी बुआ का बेटा और परिवार के निकटस्थ बन्धु थे.
हम दोनों ने नवजात शिशु को देखा और विचित्र बात सुनी.
उसका हृदय दाहिनी ओर होने के कारण उसको परीक्षण में रखा गया था. सुना ऐसा बहुत ही कम होता है.
जब हम घर वापस आए तो लालजी दूध उबाल चुका था.
और कुछ देर बाद वह अपने घर चला गया.

तब बुआ के बेटे ने बताया कि बार-बार लालजी उन दोनों के पास आकर पूछ रहा था -भैया चा बना देई का? 
कुछ खैबो का ? कुछ चाही का ?

साथ - साथ, रसोई में दूध उबालने का रूपक भी रच रहा था। आश्वस्त होने हेतु , लालजी बीच-बीच में बडे कमरे में आकर अपनी चौकीदारी भी कर रहा था!
वास्तव में बुआ के बेटे और मित्र ने उल्टा लालजी पर चौकीदार करी थी.
उन्होंने देखा कि : 
दूध उबालने पर्यन्त एक बर्तन (3/4 लीटर का) में उसने दूध निकाल कर ठंडा करके गपा-गप पी लिया और फिर उसी बर्तन में जल भरकर बड़े भगौने में डाल दिया !

यह था कम मलाई लगने और दही का पानी -पानी होने का वास्तविक कारण! दोनों ने मिलकर रहस्य का अनावरण कर दिया !
हमारी रसोई के बाहर हस्त प्रक्षालन के लिए एक नल हुआ करता था और उसी के ऊपर एक दर्पण भी लगा हुआ था. 

लालजी ने बर्तन का सब दूध पीकर अपनी मूंछों पर ताव लगाकर अपनी सूरत बार-बार दर्पण में सराहा .
और सोचा बस सब कुछ ठीक-ठीक हो गया.
उसे क्या पता था कि चोर की चोरी पकडी गई थी.

हमारी माँ ने लालजी से कुछ नहीं कहा.
क्या कहते.....?लेकिन दूध उबालने का कार्य हम लोगों ने पुन: अपना लिया.

परन्तु उसी बीच एक और विचित्र बात घटी.
उन दोनों हमारे घर धर्मयुग नामक एक प्रचलित पत्रिका आती थी.
उसमें बच्चों के लिए कुछ विशिष्ट कहानी-लेख हुआ करते थे.
और यह कहानी हमने पढी!
एक किसान था जो प्रतिदिन अपने खेतों में जाकर काम किया करता था.
किसान की पत्नी अपने पति के लिए भोजन एक सहायक के हाथ भेजा करती थी.
एक दिन उसने सहायक से कहा : 
वर्ष में 12 माह होते है.
चन्द्रमा पूर्ण पुलकित है और नदी में भरपूर जल है.
इसका मेरे पति से उत्तर लेकर आना.

शाम को जब सहायक घर आया तो उसने किसान का उत्तर दोहराया.
वर्ष में 7 माह हैं, अर्धचन्द्र है और नदी में जल कम है.

अब रहस्य का अनावरण हो गया और सहायक की छुट्टी हो गई !
रोज वह 5 रोटियाँ और आधा भाग नवनीत खा जाता और ऊपर से आधा लोटा मट्ठा भी पी जाता.

लालजी उस प्रातःकाल झाड़ू लगा रहा था.
शुभ-मुहूर्त था और हम अपनी चुटिया बना रहे थे.
इस कहानी को उसे सुनाया और अर्थ पूछा  तो वह बौखला-सा गया.
बोला- "हम का जानी बहन जी! हम नाहि जानत."
पर होशियार तो था वह.
चोर की दाढी में तिनका. समझ गया.

कुछ दिनों के बाद उसने फिर हाथ मारा!
इस बार हमारे पिताजी के महंगे फाउन्टन पेन गायब किए और अन्तत: पूजागृह से हमारी पूज्य नानी जी का पूजित चांदी का शालिग्राम की चोरी करी.
उसने सब हद पार कर दिए थे !
उसके पर्यन्त उसका हमारे घर से नाता छूट गया.
हमारी मां का हृदय इतना शुद्ध और और कोमल था.
उन्होंनें उसे समझाया कि चोरी नहीं करनी चाहिए. 
मांग लेना बेहतर है.....
लेकिन वह करता भी क्या ? अपनी आदत से मजबूर!
कहावत सच्ची है : कुत्ते की दुम, टेढी की टेढी!
3 - 4 घंटे खड़ा रहा पर न क्षमा मांगी न अपना अपराध स्वीकार किया!
हमारे परिवार से उसका उतना ही बन्धन था!
चला गया. उसके बाद न उसे देखा न उसकी खबर मिली!

लेकिन लालजी की होशियारी अब भी मन को गुदगुदा देती है.
कैसी चालाकी से दूध पीना और पानी से पूरा कर देना!!!
दूसरी ओर, बेचारा श्यामलाल ! व्यर्थ ही हम उसपर शंका कर रहे थे जब की चोर तो घर के अन्दर ही था!!!
कहावत कितना सच है: 
अजब तेरी दुनिया गज़ब इंसान
पाप करे पापी भरे पुण्यवान!!!